Friday 12 June 2015

भारत की स्वतंत्रता व द्वितीय विश्वयुद्ध

भारत में चांग की शेक का आगमन 5 फरवरी 1942 की प्रातः को लाशिओ से हुआ। वे चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति थे।उन के भारत आने का कारण विभिन्न राजनैतिक दलों का समर्थन विश्व युध्द में संयुक्त राष्ट्र के पक्ष में प्राप्त करना था। रूज़वेल्ट और चर्चिल के बीच निरंतर इन सभी बातो को लेकर चर्चा हो रही थी। चांग नेहरू को बहुत मानते थे। वे चीन के राष्ट्रवादी थे तथा माओ के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी के धुर विरोधी थे।
21 फऱवरी 1942 को एक सन्देश कलकत्ता में जारी किया जिसमे उन्होंने चीन और भारत के लोगों के आक्रमण के एकमत से विरोधी होने की बात कही। उन्होंने कहा की चीन और भारत के बीच 3000 किलोमीटर की साझी सीमा है। इन दोनों राष्ट्रों के बीच ऐतिहासक रूप से कोई युद्ध नहीं हुआ। चांग की दृष्टि में ये दोनों देशों के शांतिप्रिय होने का पर्याप्त प्रमाण था। चीन और भारत के लोग विश्व की आधी आबादी थे। चांग ने अपने सन्देश में कहा की चीन और भारत का हित ही नहीं अपितु भविष्य भी साझा है। आक्रमण विरोधी संयुक्त राष्ट्र भारत के लोगों को स्वेच्छा से मुक्त विश्व के अस्तित्व के संघर्ष में साथ देने का दायित्व निभाने की भूमिका के निर्वहन की अपेक्षा रखता था। उनके अनुसार इस सँघर्ष में आक्रमण विरोधी देशों की हार का परिणाम विश्व को सौ साल के लिए भुगतना होगा। ये हार एक बड़ी मानवीय त्रासदी होगी।
उन्होंने जापानियों की नृशंषता का लोमहर्षक चित्रण किया। अपने सन्देश को पूरा करते हुए उन्होंने अपने साथी ब्रिटेन से आशा करी कि वे भारतियों को बिना मांग के संपूर्ण राजनैतिक सत्ता सौंप देंगे।

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